2017 में केंद्र सरकार ने रक्तदाता चयन और रक्तदाता रेफरल के लिए दिशा-निर्देश जारी किए थे। दिशा-निर्देशों में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों, महिला यौनकर्मियों और पुरुषों के साथ यौन संबंध रखने वाले पुरुषों के रक्तदान पर स्थायी प्रतिबंध लगा दिया गया था।
अधिवक्ता इबाद मुश्ताक द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि ये दिशानिर्देश संयुक्त राज्य अमेरिका में 1980 के दशक के समलैंगिक पुरुषों के बारे में पुराने और पक्षपाती दृष्टिकोण पर आधारित हैं। इसमें बताया गया कि तब से, संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, इजरायल और कनाडा सहित कई देशों ने इस मुद्दे पर अपने विचारों को अद्यतन किया है।
इसके अलावा, याचिका में तर्क दिया गया कि रक्तदान पर इस तरह का कठोर प्रतिबंध इस धारणा पर आधारित है कि कुछ समूहों में यौन संचारित रोग (एसटीडी) होने की अधिक संभावना है। इसमें कहा गया कि हेमाटोलॉजी में प्रगति अब आधान से पहले रक्तदाताओं की व्यापक जांच को सक्षम बनाती है।
एक ट्रांसजेंडर द्वारा 2017 के रक्तदान नियमों को चुनौती दिए जाने के बाद शीर्ष अदालत ने 2021 में भी इस मुद्दे पर केंद्र से जवाब मांगा था।
याचिकाकर्ता ने कहा था, “ट्रांसजेंडर व्यक्तियों, पुरुषों के साथ यौन संबंध रखने वाले पुरुषों और महिला यौनकर्मियों को रक्तदाता बनने से बाहर रखना तथा केवल उनकी लैंगिक पहचान और यौन रुझान के आधार पर उन्हें रक्तदान करने से स्थायी रूप से प्रतिबंधित करना पूरी तरह से मनमाना, अनुचित और भेदभावपूर्ण तथा अवैज्ञानिक है।”