मौसम विभाग ने कहा, “दक्षिण-पश्चिम मानसून की वापसी रेखा अनूपगढ़, बीकानेर, जोधपुर, भुज और द्वारका से होकर गुजर रही है।” विभाग ने रेखांकित किया कि अगले 24 घंटों के दौरान पश्चिमी राजस्थान के कुछ और हिस्सों और पंजाब, हरियाणा और गुजरात के आसपास के इलाकों से इसके वापस जाने के लिए परिस्थितियां अनुकूल हैं।
इस साल मानसून की देरी से वापसी लगातार 14वीं बार मौसमी बारिश की देरी से वापसी है। पिछले साल, वापसी 25 सितंबर को शुरू हुई थी। तकनीकी रूप से मानसून का मौसम 30 सितंबर को समाप्त होता है, लेकिन वापसी की प्रक्रिया 15 अक्टूबर तक जारी रहती है।
आईएमडी द्वारा पूर्वानुमानित अनुसार, कुल मिलाकर चार महीने का मानसून सीजन (जून-सितंबर) ‘सामान्य से अधिक’ बारिश के साथ समाप्त होने की उम्मीद है। इसका मतलब है कि मानसून लंबी अवधि के औसत (एलपीए) के 105-110% की श्रेणी में रहने की उम्मीद है। सोमवार को संचयी (1 जून-23 सितंबर) बारिश इस अवधि की ‘सामान्य’ बारिश से 5% अधिक दर्ज की गई, जबकि सीजन के पहले महीने (जून) में 11% की कमी दर्ज की गई।
इस वर्ष केरल और पूर्वोत्तर के अधिकांश भागों में मानसून का आगमन सामान्य तिथि क्रमशः 1 जून और 5 जून के स्थान पर 30 मई को एक साथ हुआ, तथा 2 जुलाई तक पूरे देश में पहुँच गया – जो कि पूरे भारत में पहुँचने की अपनी सामान्य तिथि (8 जुलाई) से छह दिन पहले था।
आम तौर पर मानसून 38 दिनों (1 जून से 8 जुलाई) में पूरे भारत को कवर कर लेता है। इस साल जून में इसकी धीमी प्रगति के बावजूद इसने 34 दिनों में पूरे देश को कवर कर लिया। यह लगातार तीसरा साल था जब मानसून ने 2 जुलाई तक पूरे देश को कवर कर लिया।
कृषि गतिविधियों के अलावा, जल और जल विद्युत प्रबंधन भी मानसून की शुरुआत के समय, कवरेज की अवधि और वापसी पर निर्भर करता है। ‘सामान्य से अधिक’ वर्षा के कारण, देश में खरीफ (गर्मियों में बोई जाने वाली) फसलों का रकबा पहले ही बुवाई के मौसम के सामान्य (पिछले पांच वर्षों का औसत) रकबे से अधिक हो चुका है, जिसमें धान, मोटे अनाज, तिलहन और गन्ने के तहत बोए गए क्षेत्र में अधिक कवरेज की रिपोर्ट है, जो 2024-25 फसल वर्ष में अच्छे उत्पादन का संकेत है।
कृषि मंत्रालय द्वारा सोमवार को जारी किए गए बुवाई के आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले शुक्रवार तक कुल बुवाई क्षेत्र लगभग 1105 लाख हेक्टेयर था, जो कि ‘सामान्य’ क्षेत्रफल से 8 लाख हेक्टेयर अधिक था और पिछले वर्ष इसी अवधि के दौरान खरीफ फसलों के कुल क्षेत्रफल से 16 लाख हेक्टेयर (1.5%) अधिक था।