उन्होंने कहा कि भारत में हथियारों और युद्ध सामग्री के निर्माण और निर्यात से जुड़ी तीन कंपनियों को इजरायल को हथियार और युद्ध सामग्री निर्यात करने का लाइसेंस दिया गया है, यहां तक कि गाजा में चल रहे युद्ध के दौरान भी। अदानी समूह का संयुक्त उद्यम अडानी-एलबिट एडवांस्ड सिस्टम्स इंडिया लिमिटेड और अडानी-इज़राइल लिमिटेड उन्होंने इजरायल को निर्यात किए गए हथियारों और युद्ध सामग्री का ब्यौरा दिया।
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि नरसंहार सम्मेलन पर हस्ताक्षरकर्ता होने के नाते भारत इजरायल को फिलिस्तीनियों पर जारी नरसंहार को रोकने के लिए कदम उठाने के लिए बाध्य है।
भूषण ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त जीवन का अधिकार भारत के गैर-नागरिकों को भी मिलता है, इसलिए सर्वोच्च न्यायालय केंद्र सरकार को इजरायल को हथियार और गोला-बारूद की आपूर्ति के लिए सभी मौजूदा और भविष्य के लाइसेंस रद्द करने का निर्देश दे सकता है। उन्होंने कई देशों द्वारा लिए गए इसी तरह के निर्णयों का हवाला दिया।
याचिका को खारिज करते हुए पीठ ने जोर देकर कहा कि विदेश नीति पूरी तरह से केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में है और सुप्रीम कोर्ट इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता। पीठ ने कहा, “याचिकाकर्ताओं द्वारा मांगी गई राहत देने के लिए, अदालत को उनके द्वारा इजरायल के खिलाफ लगाए गए आरोपों पर निष्कर्ष निकालना होगा।”
प्रधान पब्लिक प्रोसेक्यूटर तुषार मेहता उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ताओं द्वारा मांगी गई राहतें अजीब हैं, क्योंकि विदेशी मामलों से संबंधित नीतिगत निर्णय लेना और विदेशी देशों के साथ संबंध बनाए रखना केंद्र सरकार के विशेष अधिकार क्षेत्र में है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि क्या अदालत याचिका में निहित तर्क के आधार पर सरकार से रूस से तेल आयात का लाइसेंस रद्द करने के लिए भी कह सकती है, जो यूक्रेन के साथ संघर्ष में लगा हुआ है?